कभी पानी पताशे का भंडारा देखा है? रिकॉर्ड तोड़ने वाले को मिल रहा भारी नकद इनाम


उज्जैन. धार्मिक नगरी मे प्रतिदिन कई आयोजन होते रहते हैं. लेकिन, इस बार कुछ अलग हुआ. उज्जैन के महेंद्र यादव ऐसा चेहरा है, जिनको देख कर ही लोगों की हंसी छूट जाती है. उनके ठहाका का आयोजन हर साल उज्जैन मे होता है. जो उज्जैन वासी हमेशा याद रखते है. इस बार भी ठहाका सम्मेलन मे कुछ ऐसा हुआ. जिसको देख कर लोग ख़ुश तो हुए ही लेकिन उनका पेट भी दुखने लग गया. जानिए ऐसा क्यों ?

बदलते मौसम के साथ स्वाद प्रेमियों के लिए एक अनोखा मौका उज्जैन में आयोजित किया गया. विश्व प्रसिद्ध ठहाका सम्मेलन परिवार द्वारा दीपावली ठहाका मिलन समारोह एवं “पानी पताशा भंडारा” का भव्य आयोजन ठहाका उस्ताद डॉ. महेन्द्र यादव के सान्निध्य में संपन्न हुआ. इस भंडारे में बच्चों से लेकर बड़ों तक ने मुफ्त में पानी पताशे का जमकर आनंद लिया. आयोजन में बड़ी संख्या में स्कूली और कॉलेज की लड़कियाँ, महिलाएँ तथा गणमान्य नागरिक शामिल हुए.

वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए उत्साह और चुनौती
इस आयोजन का मुख्य आकर्षण था हैदराबाद के अंकुर हरारे द्वारा बनाए गए 147 पानी पताशे खाने के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने की प्रतियोगिता. इसमे विजेता के लिए 10,000 रुपए का नकद पुरस्कार रखा गया था. हालांकि इस रिकॉर्ड को कोई तोड़ नहीं सका, लेकिन इस चुनौती में उज्जैन के मनीष सोलंकी ने 97 पानी पताशे खाकर शीर्ष स्थान प्राप्त किया. वहीं, ललित लुल्ला 83 पानी पताशे और पत्रकार धीरज गोमे 74 पानी पताशे खाकर क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे.

हास्य कवियों ने दिया आनंद का तड़का
पानी पताशे के इस आयोजन में कवियों ने भी अपनी प्रस्तुतियों से हास्य और व्यंग्य की फुहारें बिखेरी. कुमार संभव ने प्यार मोहब्बत के गीतों से सबका मनोरंजन किया, जबकि अंतर्राष्ट्रीय कवि अशोक भाटी ने अपनी अनोखी शैली में हँसी के दौर चलाए. कवि सुरेंद्र सर्किट ने अपने व्यंग्य से श्रोताओं को गुदगुदाया, युवा कवि राहुल शर्मा ने पत्नियों के खुश रहने के मंत्र के माध्यम से हास्य का पुट जोड़ा और हास्य कवि सौरभ चातक ने प्रेमिका के साथ पानी पताशा खाने के फायदे बताए. इतना ही नहीं लोकप्रिय कवि दिनेश दिग्गज ने अपने ठहाकों से सभी को लोटपोट कर दिया.

डॉ. महेन्द्र यादव की विशेष प्रस्तुति
कार्यक्रम का संचालन स्वयं डॉ. महेन्द्र यादव ने हास्य और व्यंग्य के अनोखे अंदाज में किया. उनके विशेष चुटकुले और संवाद श्रोताओं के बीच हंसी की लहरें लाते रहे. उनके शब्दों में “काबा हो या काशी, मोक्ष जब तक नहीं मिलता जब तक खाओ ना पताशी” इस तरह उन्होंने एकता और समरसता का संदेश भी दिया गया.

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