नाग नागिन नहीं असल में ये जीव लेता है इंसान से बदला, 17 साल याद रखता है चोट
क्या कोई जानवर किसी इंसान को और उसकी दी हुई तकलीफों को लंबे समय तक याद रख सकता है. भारत में बहुत से लोग शायद इस सवाल का जवाब देने के लिए नाग नागिन का नाम लें. कम से कम भारतीय किवदंतियों में तो ऐसा ही कहा जाता है कि, लेकिन आज सापों के बारे में लोग काफी जानते हैं और यह भी समझते हैं कि उनके साथ ऐसा नहीं होता है. पर नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया है कि कौवों के साथ ऐसा होता है. वे 5-10 साल नहीं बल्कि 17 साल तक किसी इंसान और उसकी दी गई तकलीफें याद रख सकते हैं.
बुद्धिमान पक्षी मानते हैं हम इसे
जी हां अगर नए शोध की मानें तो दुनिया में सबसे बुद्धिमान माने जाने वाला कौआ ऐसा करता है. इस अनोखी रिसर्च में यही बात सामने आई है कि कौवे बदले की भावना को 17 साल तक पाल कर रखते हैं. यह खोज कौवों की याद रखने की अद्भुत काबिलियत को दिखाने का बढ़िया नमूना है. अध्ययन पक्षी समुदायों में खतरों की जानकारी कैसे सामाजिक तौर पर एक दूसरे से साझा होती है, इस पर खासी रोशनी डालता है.
कैसे किया गया प्रयोग
इस शोध परियोजना की अगुआई वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने की थी जिसे 2006 में शुरू किया गया था. इस अध्ययन की शुरुआत पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर जॉन मार्जलूफ ने की थी. इसके लिए उन्होंने कुछ डरावने मुखौटे पकड़ कर 7 कौओं को पकड़ा था और उन्हें छोड़ने से पहले उनके पैर में छल्ले डा दिए थे जिससे बाद में उनकी पहचान की जा सके.
कौवे बहुत ही बुद्धिमान जानवर होते हैं, लेकिन वे तकलीफ देने वाले इंसान को याद रखते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
कई कौवों ने लिया बदला
बाद के सालों मे प्रोफेसर और उनके सहयोगियों ने उन्हीं मास्क को पहन कर यूनिवर्सिटी कैम्पस में घूमते हुए स्थानीय कौओं को दाना डाला करते थे. मार्ज़लफ ने मास्क पहने हुए एक घटना को याद किया जब उनके सामने आए 53 कौवों में से 47 ने उन्हें बुरी तरह परेशान कर दिया था. इनमें वे पकड़े गए सात कौए भी थे.
संख्या बढ़ी और फिर होने लगी कमी
हैरानी की बात ये थी कि परेशान करने वाले कौवों की कहीं ज्यादा थी. इससे पता चलता है कि ये पक्षी उन्हें खतरे में डालने वाले इंसानों को पहचान सकते हैं और इस जानकारी को अपने साथियों तक भी पहुंचा सकते हैं. अजीब बात तो तब हुई जब 2013 में परेशान करने वालों की संख्या खासी से बढ़ गई और उसके बाद से उसमें कमी देखने को मिलने लगी.
मुखौटे का उपयोग
सितंबर 2023 तक प्रयोग शुरू होने के 17 साल बाद, मार्ज़लफ़ के मास्क वाली सैर पर एक भी परेशान करने वाला कौआ नहीं सुना गया. अध्ययन का एक और दिलचस्प पहलू डिक चेनी की तरह दिखने वाले एक “तटस्थ” मुखौटे का उपयोग करना था. चेनी उस समय अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे.
क्या मुखौटे के पीछे का इंसान बदलने से पड़ा फर्क?
चेनी का मुखौटा पहने लोगों ने कौवों को बिना किसी परेशानी के खाना खिलाया, और बाद में पक्षियों के प्रकोप से बच गए. जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ा, अनजाने स्वयंसेवकों को मुखौटे पहनने के लिए मजबूर किया गया, जो कौवों के “खतरनाक” या “तटस्थ” वर्गीकरण से अनजान थे. ऐसे ही एक स्वयंसेवक ने खुद को पक्षियों के शोरगुल के केंद्र में पाया, जिसने खतरों को पहचानने और याद रखने में कौवों के कौशल की पुष्टि की.
बहुत ही काबिल होते हैं कौवे
दुनिया में कई जगह और कई बार कौवों के हमला करने की घटनाओं का उल्लेख पाया गया. कौवे अपनी अविश्वसनीय बुद्धिमानी से हमेशा चौंकाते रहते हैं,. यह केवल खतरों को पहचानने और द्वेष रखने तक ही सीमित नहीं है. पिछले शोध से संकेत मिलता है कि कौवों में औजार बनाने और यहाँ तक कि गिनने की प्रतिभा होती है. अध्ययन के नतीजे साफ बताते हैं कि कौवे 17 साल तक बदले की भावना पालते हैं और खतरे को याद रख पहचान सकते हैं.
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वे घनिष्ठ पारिवारिक समूहों में रहते हैं. उन्हें अपने झुंड के मृत सदस्यों के लिए “अंतिम संस्कार” करते हुए देखा गया है. वे एक दूसरे को बेहतरीन तरह से जानकारी देते हैं. इतना ही नहीं वे अपनी अगली पीढ़ी को खतरों की जानकारी देने के काबिल होते हैं, जिससे अगली पीढ़ी को खतरों की पहचान करने में अलग से अनुभव की जरूरत नहीं होती.
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FIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 16:22 IST