राजनीति: क्या बजेगी जनगणना वाली डफली या एक हैं तो सेफ हैं के नारे में है दम? अब चुनाव नतीजों पर टिकीं निगाहें



चुनावी लड़ाई में किसके सिर सजेगा ताज।
– फोटो : अमर उजाला

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न होने के साथ ही उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनगणना वाली डफली बजेगी या एक हैं तो सेफ हैं के नारे का दम दिखाई देगा, इसका जवाब अब 23 को होने वाली मतगणना के बाद मिलेगा।

एक्जिट पोल में सत्तारूढ महायुति की फिर से सरकार बनने के दावे किए जाने लगे हैं। लेकिन, बीते लोकसभा व हरियाणा विधानसभा चुनाव के एक्जिट पोल के नतीजों को देखते हुए विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) अधिक परेशान नहीं है। उसके नेताओं को लगता है कि चुनाव  नतीजों में संविधान बचाओ और जातिगत जनगणना का असर दिखाई देगा। वहीं, महायुति के नेताओं का दावा है कि इस बार चुनाव में फतवा नहीं भगवा चला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक हैं तो सेफ हैं का नारा भी खूब प्रभावी रहा है। रही-सही कसर लाडली बहनों ने पूरा किया है। इसलिए महायुति की जीत तय है।

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने दावा किया है कि कांग्रेस  नंबर एक पार्टी बनेगी और एमवीए को सत्ता मिलेगी। वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने विश्वास जताया कि डबल इंजन की सरकार महाराष्ट्र में बरकरार रहेगी। सीएम एकनाथ शिंदे भी सत्ता में वापसी के प्रति आश्वस्त हैं। महाराष्ट्र  चुनाव में कैश कांड और बिटकॉइन ने अंतिम समय में हलचल मचाई। वहीं, एमवीए में लड़ाई अंत तक जारी रही। सोलापुर में कांग्रेस सांसद प्रणिति शिंदे ने मतदान से पूर्व शिवसेना (यूबीटी) प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय को समर्थन देकर उन्हें झटका दिया है।

फतवा पर भगवा भारी पड़ा तो पलट सकता है पासा

लोकसभा चुनाव में भाजपा को विदर्भ से भारी नुकसान हुआ था। लेकिन इस बार विदर्भ में भाजपा वापसी करती दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र की सत्ता का गणित विदर्भ और मुंबई ही तय करेगा। जहां करीब सौ सीटें हैं। विदर्भ में कपास, सोयाबीन और जातिगत जनगणना के मुद्दे उतना असरदार नहीं रहे। जबकि कांग्रेस और एमवीए का पूरा चुनावी अभियान इसी पर निर्भर था। वहीं, मुंबई में लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों में एमवीए के उम्मीदवारों को मिले थोक वोट बैंक से इस बार बहुसंख्यक मतदाता भी सजग दिखाई दिया है। अगर, फतवा पर भगवा भारी पड़ा तो चुनावी पासा पलट सकता है। एमवीए के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित करने का भी नुकसान हो सकता है।



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