किस देश ने रखा चक्रवात फेंगल का नाम? चक्रवातों के नामकरण की प्रक्रिया क्या है? – India TV Hindi
नई दिल्ली: भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना गहरा दबाव आज यानी कि 27 नवंबर को चक्रवात में तब्दील हो सकता है। मौसम विभाग का कहना है कि अगले 2 दिनों में यह चक्रवात श्रीलंका के तट से होते हुए तमिलनाडु की ओर बढ़ सकता है। इस चक्रवाती तूफान को फेंगल नाम दिया गया है और इसे लेकर देश के दक्षिणी राज्यों में काफी चिंता देखी जा रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि चक्रवातों के नाम कैसे रखे जाते हैं?
कैसे रखे जाते हैं साइक्लोन या चक्रवातों के नाम?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक, मौसम पूर्वानुमानकर्ता भ्रम से बचने के लिए प्रत्येक उष्णकटिबंधीय चक्रवात को एक नाम देते हैं। आम तौर पर, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नाम क्षेत्रीय स्तर पर नियमों के अनुसार रखा जाता है। हिंद महासागर क्षेत्र के लिए, चक्रवातों के नामकरण के लिए 2004 में एक सूत्र पर सहमति बनी थी। इस क्षेत्र के 13 देशों ने नामों का एक सेट दिया, जो चक्रवाती तूफान आने पर एक के बाद एक दिए जाते हैं। चक्रवातों के नाम चुनते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि वे आसानी से याद रहें, उनका उच्चारण भी आसान हो और वे आपत्तिजनक या विवादास्पद न हों। इनके नामों को विभिन्न भाषाओं से भी चुना जाता है ताकि अलग-अलग इलाकों में रहने वाले लोग इनसे परिचित हों।
‘फेंगल’ नाम का प्रस्ताव कैसे रखा गया?
चक्रवातों के नामों की मौजूदा लिस्ट 2020 में तैयार की गई थी, जिसमें प्रत्येक सदस्य राज्य 13 नामों का योगदान देता है। इन नामों का इस्तेमाल रोटेशन में किया जाता है। किसी भी नाम का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता है यानी कि हिंद महासागर क्षेत्र में आया हर चक्रवात अलग नाम से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ‘फेंगल’ नाम का सुझाव सऊदी अरब ने दिया था। इसके बाद अब जो भी अगला चक्रवात आएगा उसका नाम ‘शक्ति’ रखा जाएगा और इस नाम को श्रीलंका ने सुझाया है। वहीं, इसके बाद कतार में थाईलैंड है और उसने ‘शक्ति’ के बाद के चक्रवात के लिए ‘मोंथा’ नाम दिया है।
उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवातों का नाम कौन रखता है?
उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवातों का नाम विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के सदस्य देशों और एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (UNESCAP) पैनल द्वारा रखा जाता है। इसके सदस्य देशों में बांगलादेश, भारत, ईरान, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, यमन शामिल हैं। प्रत्येक सदस्य देश संभावित नामों की एक लिस्ट देता है, जिसका इस्तेमाल क्षेत्र में चक्रवात आने पर क्रमिक रूप से किया जाता है। यह सिस्टम 2004 से लागू है ताकि तूफानों को आसानी से पहचाना जा सके और इसे लेकर कोई भी कम्यूनिकेशन बेहतर तरीके से हो।
चक्रवातों के नामों की सांस्कृतिक प्रासंगिकता
हाल के वर्षों में, IMD ने नामों की लिस्ट में सांस्कृतिक महत्व वाले नामों को शामिल करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए, अम्फान नाम, जिसका थाई भाषा में मतलब आकाश होता है, का इस्तेमाल 2020 में पश्चिम बंगाल में आए चक्रवात के लिए किया गया था। चक्रवातों के नामकरण की IMD की परंपरा क्षेत्र के विभिन्न देशों को शामिल करने और उष्णकटिबंधीय तूफानों के साझा अनुभव के इर्द-गिर्द समुदाय की भावना पैदा करने का एक तरीका है। ये नामकरण प्रणाली समय के साथ विकसित हुई है।
नाम चुनने का पुराना पैटर्न क्या था?
चक्रवातों के नाम इससे पहले वर्णानुक्रम में चुने जाते थे, जिसमें वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के लिए एक नाम दिया जाता था। हालांकि यह सिस्टम कारगर नहीं था क्योंकि इससे काफी भ्रम पैदा होता था और लोगों को नाम याद रखने में मुश्किल पेश आती थी। ऐसे में पूर्व-निर्धारित नामों का मौजूदा सिस्टम शुरू किया गया। अटलांटिक और दक्षिणी गोलार्ध (हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत) में, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को वर्णानुक्रम में नाम मिलते हैं, जिसमें महिलाओं और पुरुषों के नाम बारी-बारी से आते हैं।
उत्तरी हिंद महासागर में, देशों ने 2000 में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामकरण के लिए एक नए सिस्टम का इस्तेमाल करना शुरू किया। ये नाम देश के हिसाब से वर्णमाला के क्रम में दिए जाते हैं तथा महिला और पुरुषों के नाम बारी-बारी से रखे जाते हैं। नामों की ये लिस्ट WMO के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान एवं जल विज्ञान सेवाओं के एक विशिष्ट क्षेत्र के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित की जाती है और संबंधित उष्णकटिबंधीय चक्रवात क्षेत्रीय निकायों द्वारा उनके वार्षिक या द्विवार्षिक सत्रों में उन्हें मंजूरी दी जाती है।