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श्रेयस तलपदे
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अभिनेता श्रेयस तलपदे भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय किरदार ‘पुष्प राज’ की आवाज बन चुके हैं। ‘पुष्पा 2’ के बाद इसी महीने उनकी आवाज से सजी दूसरी फिल्म ‘मुफासा’ रिलीज होने जा रही है। श्रेयस से अमर उजाला के लिए ये खास बातचीत की पंकज शुक्ल ने। इस बातचीत में श्रेयस ने पहली बार खुलासा किया है कि आखिर वह पुष्प राज यानी पुष्पा की आवाज बने कैसे?
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मुफासा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
जिसने भी पिछली फिल्म ‘द लॉयन किंग’ हिंदी में देखी है, वह टिमोन की आवाज को कभी भूल ही नहीं सकता, इसका ये मुंबइया रंग आपका है या इसके हिंदी संवाद लिखने वाले का?
टिमोन को हिंदी में मयूर पुरी ने लिखा ही ऐसा था। लेकिन, अब अपन अभिनेता हैं तो कुछ न कुछ अपनी तरफ से करने का कीड़ा तो रहता ही है। अब जैसे जिन शब्दों में होंठ चिपकते हैं, हिंदी की वर्णमाला का ‘प’ वर्ग, तो वहां कुछ न कुछ अपनी तरफ से मुंबइया स्थानीय भाषा में कुछ मैं जोड़ देता था अपनी तरफ से, लोगों के बीच ये हिट हो गया। हमारा काम होता है लिखे हुए को, लोगों तक असरदार तरीके से पहुंचाना और इस तरह से पहुंचाना कि वो मस्ती सबके पल्ले पड़े।
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मुफासा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
और, टिमोन ने ही श्रेयस तलपदे के भीतर छुपे एक अलग ही कलाकार का परिचय दुनिया से कराया?
कह सकते हैं। आवाज की दुनिया में आवाज के कलाकार के तौर पर ये मेरा पहला प्रयोग था। फिल्म ‘लॉयन किंग’ पहली फिल्म है जिसके लिए मैंने अपने जीवन में कारोबारी तरीके से डबिंग की। इस फिल्म के जो डबिंग डायरेक्टर थे, उनको इस आवाज में जो कुछ तो दिखा। टिमोन ने ही मुझे ‘पुष्पा पार्ट वन’ और अब ‘पुष्पा पार्ट टू’ दिलाई। टिमोन की वजह से ही मैं बन पाया ‘पुष्पा’! पहली फिल्म के हिंदी अधिकार मनीष शाह के पास थे। तब उन्होंने शंका जताई थी कि श्रेयस से हो पाएगा, ‘पुष्पा’! फिर उन्होंने टिमोन को सुना और तब उनका बुलावा आया अल्लू अर्जुन के इस किरदार की डबिंग करने के लिए।
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मुफासा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
आपने पहली बार शेर कब देखा? डर लगा था?
मुझे याद तो नहीं लेकिन मुझे लगता है कि पहली बार शेर तो यहां मुंबई के भायखला चिड़ियाघर में ही देखा होगा। लेकिन, जो अनुभव मुझे एक टाइगर को सामने देखकर हुआ वह बहुत रोचक है। हम लोग यहां मुंबई के नेशनल पार्क किसी काम से गए थे तो वहां के वन अधिकारी हमें वहां लेकर गए जहां उन्होंने देश भर से पकड़कर लाए गए आदमखोर टाइगर रखे थे। इनमें से एक टाइगर का नाम था, बाजीराव और इतना बड़ा टाइगर, मैंने तो पहले कहीं नही देखा। उसे पिंजड़े में देखकर भी सिहरन हो रही थी।
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श्रेयस तलपदे
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
कोई नहीं, कहते हैं कि डर के आगे जीत है। और, कॉमेडी की जीत तो होती ही है, जब भी आप परदे पर या परदे के पीछे अभिनेता संजय मिश्रा के साथ होते हैं..
फिल्म ‘मुफासा’ की डबिंग हमने साथ साथ नहीं की। हमारी लाइनें अलग अलग डब हो रही थीं। तो, एक साथ की जुगलबंदी जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन हां संजय भाई की डबिंग की हुई लाइनें सुनकर उनके साथ प्रतिक्रिया वाले संवाद बहुत कमाल के बन जाते हैं। वह जो कुछ डब करके जाते हैं, वह मैं सुन लेता हूं और बस उसी हिसाब से अपनी आवाज घुमा देता हूं।