सिर्फ लीड एक्टर्स की कास्टिंग करते हैं डायरेक्टर: राज कुमार के साथ काम नहीं करना चाहते थे नाना, डायरेक्टर मेहुल ने नफरत को दोस्ती में बदला


5 मिनट पहले

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1993 की फिल्म तिरंगा में नाना पाटेकर और राज कुमार ने साथ काम किया था। इस फिल्म का डायरेक्शन मेहुल कुमार ने किया था।

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि डायरेक्टर का काम सिर्फ कट बोलना होता है, लेकिन उसकी जिम्मेदारी इससे बहुत ज्यादा होती है। फिल्म के बनने से लेकर फिल्म की रिलीज तक, डायरेक्टर को अलग-अलग डिपार्टमेंट में काम करना पड़ता है।

एक डायरेक्टर को राइटिंग, एडिटिंग, फोटोग्राफी समेत सभी चीजों की नॉलेज होनी बहुत जरूरी है। इसीलिए डायरेक्टर को कैप्टन ऑफ द शिप कहना गलत नहीं होगा।

रील टु रियल के इस एपिसोड में हम फिल्म मेकिंग में डायरेक्टर के रोल को समझेंगे। इसके लिए हमने डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी और मेहुल कुमार से बात की। तुषार ने राजकुमार राव की हालिया फिल्म श्रीकांत का डायरेक्शन किया है। वहीं मेहुल कुमार तिरंगा, क्रांतिवीर, मृत्युदाता जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं।

फिल्म बनाने के लिए डायरेक्टर को सही स्क्रिप्ट का चुनाव करना जरूरी फिल्म की मेकिंग तभी शुरू हो सकती है, जब डायरेक्टर के पास एक बहुत अच्छी कहानी (स्क्रिप्ट) हो। उस कहानी के सब्जेक्ट में बहुत नयापन होना चाहिए। कहानी के चुनाव में डायरेक्टर को बिल्कुल भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

एक फिल्म को बनाने में 2-3 साल का समय लग जाता है। ऐसे में मेकर्स को ध्यान रखना चाहिए कि फिल्म की कहानी आने वाले 2-3 साल या उसके बाद भी लोगों के लिए नई और हटकर हो।

फिल्म के लीड एक्टर्स का चुनाव डायरेक्टर्स करते हैं, साइड एक्टर्स के चुनाव की जिम्मेदारी कास्टिंग डायरेक्टर पर फिल्मों के लिए एक्टर्स की कास्टिंग में भी डायरेक्टर्स का इन्वॉल्वमेंट होता है। इस बारे में तुषार कहते हैं, ‘एक्टर्स की कास्टिंग में मेरी पूरी भागीदारी रहती है। फिल्म या किसी वेब सीरीज की जो मेन कास्टिंग होती है, वो मैं कास्टिंग डायरेक्टर के साथ मिलकर करता हूं, लेकिन जो साइड एक्टर्स या बैकग्राउंड एक्टर्स की कास्टिंग होती है, उसकी पूरी जिम्मेदारी कास्टिंग डायरेक्टर पर ही होती है।

जैसे कि फिल्म श्रीकांत में मेन लीड के अलावा पूरी कास्टिंग अभिमन्यू ने की थी। उन्होंने बेहतर कास्टिंग की थी। फिल्म में बहुत नए चेहरे देखने को मिले हैं, लेकिन सभी ने अच्छा काम किया।

फिल्म के लिए सभी लोगों की कास्टिंग, डायरेक्टर अकेले नहीं कर सकता है। उसे बाकी चीजों पर ध्यान देना पड़ता है। ऐसे में हमें कास्टिंग डायरेक्टर पर भरोसा करना ही पड़ता है।’

किस दिन कब और कहां शूटिंग होगी, यह भी डायरेक्टर करते हैं डिसाइड अगर किसी फिल्म की शूटिंग बिना प्रॉपर प्लानिंग के शुरू होती है, तो नुकसान हमेशा होता है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर सके, इसके लिए प्री-प्रोडक्शन का काम बेहतरीन ढंग से होना चाहिए।

मान लीजिए, अगर फिल्म की शूटिंग किसी आउटडोर लोकेशन पर करनी है, तो सबसे पहले डायरेक्टर बाकी लोगों के साथ मिलकर आउटडोर का पूरा चार्ट बनाता है। आउटडोर शूट में कितने शॉट हैं, कितने गाने हैं, यह सभी चीजें चार्ट में लिखी होती हैं। इस चार्ट में हर सीन के हिसाब से कपड़ों की भी डिटेलिंग होती है। बाकी शूटिंग से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज का लेखा-जोखा उस चार्ट में रहता है।

इस बारे में तुषार ने कहा, ‘किसी फिल्म की शूटिंग बिना प्रॉपर तैयारी के बिल्कुल शुरू नहीं हो सकती है। जैसे कि मैं शूटिंग शुरू होने से एक महीने पहले ही अपनी पूरी टीम के साथ बैठकर स्क्रिप्ट को पूरा रिवाइज कर लेता हूं। ताकि सबको पता हो कि किस दिन कौन सा शॉट फिल्माना है या पहला और लास्ट शॉट क्या होगा।’

प्रोड्यूसर के साथ मिलकर ही डायरेक्टर को करना चाहिए काम मेहुल कुमार ने बताया कि फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के बीच एक एग्रीमेंट होता है। इस एग्रीमेंट में फीस से संबंधित सभी चीजें लिखी होती हैं। इसके बाद प्रोड्यूसर और डायरेक्टर एक फैमिली की तरह काम करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि फिल्म मेकिंग में डायरेक्टर और प्रोड्यूसर का एक साथ मिलकर काम करना जरूरी होता है।

फिल्म के शेड्यूल के हिसाब से डायरेक्टर को मिलती है फीस मेहुल ने फीस डिस्ट्रीब्यूशन पर भी बात की। उन्होंने एक उदाहरण के जरिए समझाते हुए कहा, मान लीजिए फिल्म की शूटिंग 6 शेड्यूल में पूरी हो रही है, तो इन 6 शेड्यूल में थोड़ा-थोड़ा करके प्रोड्यूसर, डायरेक्टर की फीस का भुगतान करते हैं। फिर बचा हुआ पेमेंट फिल्म की रिलीज से पहले डायरेक्टर को दे दिया जाता है।

हालांकि प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच पैसे के लेन-देन का तरीका प्रोजेक्ट टु प्रोजेक्ट वैरी करता है।

कई बार तो प्रोड्यूसर शुरुआत में डायरेक्टर को फीस दे देते हैं। वहीं, कभी-कभार फिल्म की शूटिंग खत्म हो जाने के बाद डायरेक्टर को फीस मिलती है।

गोविंदा ने शूट करने से मना किया तो डायरेक्टर मेहुल ने फिल्म को बंद होने से बचाया फिल्म ‘आसमान से ऊंचा’ में गोविंदा ने काम किया था। फिल्म का लास्ट एक्शन सीक्वेंस कश्मीर में फिल्माना था। ठंड बहुत ज्यादा थी और शूटिंग की डेट भी आगे बढ़ गई थी, इसलिए गोविंदा कश्मीर में रुकने के लिए तैयार नहीं थे। फिल्म के डायरेक्टर मेहुल ने उनसे बहुत रिक्वेस्ट की, लेकिन वो नहीं माने।

मेहुल फिल्म को अधूरा छोड़ते तो बहुत नुकसान होता। ऐसे में उन्होंने एक तरकीब निकाली। उन्होंने उस एक्शन सीक्वेंस की शूटिंग गोविंदा के बॉडी डबल के साथ कर ली। वहीं सीन के जो क्लोजअप शॉट थे, वो उन्होंने गोविंदा के साथ मुंबई स्थित फिल्मसिटी में फिल्माए। यह डायरेक्टर मेहुल की ही समझदारी थी कि फिल्म को बर्बाद होने से उन्होंने बचा लिया।

मेहुल ने आगे कहा- उस सीन को हमने इस तरह से फिल्माया है कि आज भी लोगों का मालूम नहीं चलता है कि सीन के कुछ हिस्से की शूटिंग फिल्मसिटी में हुई है।

इसी सीन की शूटिंग कश्मीर और फिल्मसिटी में हुई थी।

इसी सीन की शूटिंग कश्मीर और फिल्मसिटी में हुई थी।

राज कुमार के साथ काम नहीं करना चाहते थे नाना फिल्म ‘तिरंगा’ नाना के करियर की अहम फिल्म साबित हुई थी जो कि 1993 में रिलीज हुई थी। इसमें उन्होंने इंस्पेक्टर वागले का रोल प्ले किया था। उनकी कास्टिंग पर फिल्म के डायरेक्टर मेहुल कुमार ने कहा, ‘इंस्पेक्टर वागले के रोल के लिए मेरी पहली चॉइस रजनीकांत थे। उन्हें कहानी भी पसंद आई थी, लेकिन उन्होंने फिल्म करने से मना कर दिया।

उन्होंने कहा- सब्जेक्ट अच्छा है, मेरा कैरेक्टर भी पावरफुल है, मेरा नाम भी रखा है, पर राजकुमार के साथ काम करने को लेकर मेरा मन न बोल रहा है। इसके बाद नसीरुद्दीन शाह को अप्रोच किया गया, तब उन्होंने मना करते हुए कहा- मेहुल जी, राज साहब के साथ मेरी नहीं जमेगी।

इसके बाद नाना को ऑफर दिया गया, उन्होंने कहानी सुनते ही फिल्म के लिए हामी भर दी, लेकिन उन्होंने कहा कि अगर राज जी फिल्म में इंटरफियर करेंगे तो मैं शूटिंग छोड़ कर चला जाऊंगा।

नाना की कास्टिंग की बात मैंने राज जी को फोन करके बताई। इस पर उन्होंने कहा- वह तो बदतमीजी करता है। सेट पर गाली-गलौज कर लेता है। उसके साथ तो गड़बड़ हो जाएगी। खैर, अगर बात ओके हो गई है, तब चलो फिल्म करते हैं।

इस कास्टिंग पर इंडस्ट्री से जुड़े एक नामी-गिरामी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर ने मुहूर्त के दिन ही चिंता जताते हुए कहा कि भगवान करे कि तुम्हारा तिरंगा लहराए। मुझे तो चिंता हो रही है कि तुमने एक ईस्ट और दूसरे वेस्ट को कास्ट करके छह महीने में फिल्म बनाने का फैसला लिया है।

शुरुआत में राजकुमार और नाना पाटेकर शॉट देने के बाद अलग-अलग जा बैठते थे, लेकिन ‘पी ले पी ले ओ मेरे राजा…’ गाना पिक्चराइज होने के बाद दोनों की दोस्ती हो गई। इसके बाद तो क्लाइमैक्स फिल्माने तक दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। रिलीज के बाद फिल्म भी सुपरहिट रही।’

फिल्म तिरंगा के एक सीन में नाना पाटेकर और राज कुमार।

फिल्म तिरंगा के एक सीन में नाना पाटेकर और राज कुमार।

डायरेक्टर ने फिल्म में नाना को पहनाए थे पुराने कपड़े मेहुल की फिल्म क्रांतिवीर में भी नाना पाटेकर ने काम किया था। इस फिल्म का किस्सा सुनाते हुए डायरेक्टर ने कहा- आज के समय में एक्टर्स खुद ही कपड़े सिलेक्ट करते हैं, पहले ऐसा नहीं होता था। फिल्म क्रांतिवीर में नाना का लुक थोड़ा फकीरों वाला था। ऐसे में मैंने नाना से कहा कि तुम फिल्म में अपने सारे पुराने कपड़े पहनना, जिसे प्रेस भी नहीं किया जाएगा। उसके बदले मैं नए कपड़े बनवाकर दिला दूंगा। मेरी इस डिमांड को उन्होंने खुशी-खुशी मान लिया था।

हमेशा सेट पर लेट पहुंचने वाले शत्रुघ्न सिन्हा, मेहुल के कहने पर टाइम से शूटिंग पर पहुंचे इंडस्ट्री में यह किस्सा बहुत मशहूर था कि शत्रुघ्न सिन्हा कभी भी समय पर शूटिंग के लिए नहीं आते थे। इस बारे में मेहुल ने कहा- फिल्म नाइंसाफी में उन्होंने मेरे साथ काम किया था। एक दिन फिल्म के प्रोड्यूसर ने कहा कि सभी लोग वक्त पर आते हैं, तो सिन्हा साहब क्यों नहीं आते। मैंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

एक दिन मौका देखते ही मैं सिन्हा साहब से मिलने चला गया। मैंने उनसे कहा कि सेट पर ऐसी बातें होती हैं कि आप वक्त पर नहीं आते हैं। लोग ऐसा कहें, ये अच्छा तो नहीं है। इसी वजह से कल आपका शूट सुबह 11 बजे रहेगा, तो प्लीज आ जाइएगा। उन्होंने मेरा कहना मान लिया।

जब मैंने यह बात प्रोडक्शन टीम को बताई तो हर कोई हैरान था। सबका कहना था कि वो वक्त पर नहीं आएंगे, लेकिन जब अगले दिन सुबह 10:30 बजे सिन्हा साहब सेट पर पहुंचे तो हर कोई दंग था।

हालांकि बाद में सिन्हा साहब ने मुझसे कहा था कि एक दिन का तो ठीक था, लेकिन हर दिन ऐसे शूटिंग मत रखना।

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